उठ चल कि तुझमे ये जाँ अभी बाक़ी है तू औरत है यही तेरे निशां अभी बाक़ी हैं। उठ चल कि तुझमे ये जाँ अभी बाक़ी है तू औरत है यही तेरे निशां अभी बाक़ी हैं।
जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है। जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है।
क्यों खोए हो इस तरह कहीं तुम जिंदगी में तमाशा बाकी है। क्यों खोए हो इस तरह कहीं तुम जिंदगी में तमाशा बाकी है।
उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है। उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है।
कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। मधुरिम मधुरिम कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। म...
माँ माँ